रनों की बरसात करने वाले रैना की सफलता के पीछे है ‘माचिस’ का कमाल
वर्ल्ड कप के पहले मैच में पाकिस्तान के खिलाफ सुरेश रैना ने 56 गेंदों पर 74 रन बनाए हैं। इसमें पांच चौके और तीन गगनचुंबी छक्के शामिल हैं। टीम इंडिया के स्कोर को आगे बढ़ाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। दूसरी ओर, भारतीय क्रिकेट टीम को जब भी जरूरत पड़ी है, उन्होंने अपनी बैटिंग, बॉलिंग और फिल्डिंग से सौ फीसदी परफॉर्मेंस दिया है।
क्रिकेट के प्रति उनका जुनून बचपन से ही था। सुबह मैदान पर जाकर खेलने
के लिए वह साढ़े चार बजे ही चारपाई से उठ जाते थे। इसके लिए वह अपने साथ
‘माचिस’ की डिब्बी लेकर सोते थे। घर के लोगों को डिस्टर्ब न हो, इसके
लिए कमरे का लाइट बंद करके सोते थे। सुबह प्रैक्टिस में जाने के लिए वह
रात में बार-बार माचिस की तिल्ली जलाकर घड़ी में समय देखते थे।
रन से गुस्सा हो जाता था शांत
दिनेश रैना ने बताया कि सुरेश रैना का बचपन का नाम सोनू है। 11 साल की
उम्र से ही क्रिकेट के प्रति उसका जुनून था। उन्होंने कहा, ‘सुबह 4:30
बजे खेलने जाने के लिए वह रातभर ठीक से सो नहीं पाता था। जब पांच बजे पढ़ने
के लिए हमलोग उसे जगाने जाते थे तो वह कमरे में न होकर मैदान में होता था।
हमें गुस्सा तो बहुत आता था, लेकिन जब वह आकर बताता था कि उसने सबसे अधिक
रन बनाए और इतने खिलाड़ी को आउट किया, तो पूरे परिवार का गुस्सा दूर हो
जाता था।’
कक्षा आठ तक मुरादनगर में की पढ़ाई
सुरेश रैना ने कक्षा आठ तक की पढ़ाई मुरादनगर के राजकीय आयुध निर्माणी
इंटर कॉलेज से की। इसके बाद उनका लखनऊ स्पोर्ट्स कॉलेज में सेलेक्शन हो
गया। कक्षा नौ से इंटर तक की पढ़ाई लखनऊ के गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स
कॉलेज में पूरी की। उसके बाद लखनऊ से ही बीए ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की। सुरेश
रैना के बड़े भाई नरेश रैना और दिनेश रैना का कहना है कि बचपन से ही क्रिकेट
के प्रति उनकी लगन थी। बचपन से लेकर आज तक जब भी वे उसके साथ क्रिकेट
खेले, कभी उसे आउट नहीं कर सके।
सीनियर की गेंद पर मारे थे तीन छक्के
रैना के बड़े भाई दिनेश रैना ने बताया कि करीब 12 साल की उम्र में लखनऊ
स्पोर्ट्स कॉलेज जाने से एक दिन पहले वह मुरादनगर में ही मैदान पर खेल रहे
थे। घर के सामने ही खेल का मैदान था। सुरेश वहां एक सीनियर की गेंद पर तीन
छक्के लगा चुके थे। उनके कुछ दोस्त पास गए और बोले, 'देखो सुरेश कितना
अच्छा खेल रहा है।' तब उन्हें लगता था कि एक न एक दिन यह क्रिकेट में जरूर
अपना नाम कमाएगा।
दिनेश ने बताया कि क्रिकेट का कहीं मैच होता था तो सुरेश स्कूल से बंक मार
देता था। बाद में उसका बैग लेकर उसके साथ के बच्चे घर पहुंचते थे। कई बार
वह क्रिकेट खेलने के लिए आसपास के गांव में होने वाले मैचों में चले जाते
थे। उनके अच्छे खेल को देखकर हर कोई उन्हें अपनी टीम की ओर से खिलाना
चाहता था। शाम को जब वह ट्रॉफी लेकर लौटते थे, तो उनके प्रति गुस्सा कम हो
जाता था।
रैगिंग से डरते थे रैना
यूपी के हरफनमौला क्रिकेटर सुरेश रैना को कभी रैगिंग से बहुत डर लगता
था। उन्हें हमेशा खौफ बना रहता था कि कहीं उनके सीनियर उनकी रैगिंग न करें।
इस डर से वे कई दिनों तक परेशान रहे। इसके कुछ दिन बाद स्पोर्ट्स कॉलेज से
वापस घर आ गए थे। इसके बाद उन्होंने मन बना लिया कि वह फिर कभी स्पोर्ट्स
कॉलेज वापस नहीं जाएंगे।
उस दौरान उनके परिवार खासकर भाइयों ने रैना को खूब समझाया। यहां तक कि
स्पोर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल ने भी उन्हें भरोसा दिया कि उन्हें कोई कुछ
नहीं करेगा। वह बस अपने खेल पर ध्यान दें। इसके करीब छह महीने बाद सुरेश
स्पोर्ट्स कॉलेज वापस जाने के लिए राजी हुए। वहां उन्होंने क्रिकेट की
बारीकियां सीखी। इसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
800 प्रतिभागियों को पछाड़ा
सुरेश रैना के बड़े भाई ने बताया कि लखनऊ स्पोर्ट्स कॉलेज में करीब
800 प्रतिभागियों को पछाड़ने के बाद उसका चयन हुआ था। इसके लिए मेरठ,
गाजियाबाद और लखनऊ में ट्रायल हुआ था। स्पोर्ट्स कॉलेज में एडमिशन के बाद
सुरेश रैना वहां अच्छा खेल रहे थे। उनकी खेल को देखकर सीनियर भी हैरत में
पड़ गए थे।
सीखी क्रिकेट की बारीकियां
उसी दौरान रैना के दिल में रैगिंग का डर बैठ गया। उसी डर से वह वापस
मुरादनगर लौट आए। घर वापस आने पर दिनेश ने उनके कोच दीपक शर्मा से बात की।
कोच ने उनसे कहा कि वह छोटे भाई से बात करें और उन्हें समझाएं। यह उनके
भविष्य का सवाल है। तब भाइयों ने सुरेश को किसी तरह समझाया। साथ ही उन्हें
स्पोर्ट्स कॉलेज वापस भेजा। वहां रैना ने ख़ूब मेहनत की। मन लगाकर क्रिकेट
की बारीकियां सीखी।
भाई दिनेश और नरेश के अनुसार, कॉलेज के प्रिंसिपल भी सुरेश के खेल को देखकर
पहचान गए थे। उन्हें मालूम था कि यह लड़का एक न एक दिन जरूर ऊंचाइयों तक
पहुंचेगा। आसमान की बुलंदियां छूएगा। उसके बाद सभी ने स्पोर्ट्स कॉलेज में
उसका सहयोग किया। सुरेश ने सभी का मान रखते हुए क्रिकेट में अपना और देश का
नाम रोशन किया।
रैना को अपनी सोच नहीं बदलनी चाहिए
सुरेश रैना को क्रिकेट का ककहरा सिखाने वाले कोच दीपक शर्मा कहते हैं
कि वो एक आक्रामक बल्लेबाज हैं। उन्हें अपना स्वाभाविक अंदाज कायम रखते
हुए नए प्रयोगों से बचना चाहिए। आक्रामक बल्लेबाजी को लेकर उन्हें अपनी
सोच नहीं बदलनी चाहिए।
रैना एक अच्छे गेंदबाज भी हैं
कोच दीपक शर्मा कहते हैं कि रैना एक अच्छे गेंदबाज भी हैं। उनकी सबसे
बड़ी खासियत यह है कि वे बल्लेबाज को पहले भांपते हैं और फिर गेंद फेंकते
हैं। अपनी गेंदबाजी को लेकर उनके अंदर एक अद्भुत आत्मविश्वास है, जो
उन्हें दूसरों से अलग करता है। उन्होंने यह भी कहा कि धोनी एक परिपक्व
कप्तान हैं और वे रैना की गेंदबाजी को भी परख चुके हैं।
गेंद की कमजोरी को किया दूर
शॉर्ट गेंद को खेलने में आने वाली तकलीफ को लेकर रैना लखनऊ के गुरु
गोबिंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज में पहुंचे। स्पोर्ट्स कॉलेज के एस्ट्रोटर्फ
पर सुरेश रैना ने कोच दीपक शर्मा की निगरानी में लगातार 15 दिनों तक शॉर्ट
पिच गेंदों को खेलने का कड़ा अभ्यास किया। इस दौरान उनका लक्ष्य अपनी इस
बड़ी कमजोरी को दूर करना ही रहा। इतने दिनों की प्रैक्टिस के बाद वो शॉर्ट
पिच गेंदों को खेलने में माहिर हो गए।
शॉर्ट पिच गेंदों पर लगाए पुल शॉट
लखनऊ के स्पोर्ट्स मैदान में कड़ी प्रैक्टिस करने के बाद सुरेश रैना टीम इण्डिया के साथ इंग्लैंड दौरे पर गए। रैना ने यहां की घसियाली पिचों पर जेम्स एंडरसन
जैसे तेज गेंदबाजों की शॉर्ट पिच गेंदों पर पुल शॉट का जबर्दस्त प्रदर्शन
किया। इस सीरिज में उन्होंने तीन मैचों की दो पारियों में 71 के औसत से
142 रन बनाए।
(source = Bhaskar)
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